चेक बाउंस के मामले मे, ये सिद्ध करने की जिम्मेदारी अभियुक्त यानी की जो चेक जारी करने वाला होता है उसके उपर होता है की वो कोर्ट मे ठोस गवाहों और सबूतों की मदत से ये साबित करे की जिस चेक के सम्बन्ध मे कोर्ट मे अभियुक्त के उपर देनदारी का केस चल रहा है वो चेक परिवादी के पास केसे पहुंचा!
क्या था मामला
शिकायतकर्ता सेब की पैंकिंग तथा बंधे माल को मुख्य मार्ग तक पहुंचाने का कार्य करता था। शिकायतकर्ता ने अभियुक्त द्वारा खरीदे गये माल की पैंकिग की व सारा माल मुख्य मार्ग तक पहुंचाकर कुल देय राशि का हिसाब अभियुक्त को दिया। जिसके भुगतान की एवज में उसे प्रश्नगत चैक अभियुक्त ने दिया जिसे भुगतान के लिये बैंक में प्रस्तुत करने पर “अपर्याप्त राशि ” की टिप्पणी के साथ वापिस लौटा दिया गया। परिणाम स्वरूप राशि भुगतान का नोटिस दिया गया तथा प्रदत्त समय सीमा में भी राशि भुगतान ना होने पर अन्तर्गत धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम अभियुक्त के विरुद्ध परिवाद प्रस्तुत किया गया। प्रस्तुत साक्ष्य के आंकलन पर परीक्षण न्यायालय ने पाया कि चैक जारी होने की तिथि पर देयराशि, चैक राशि से काफी कम थी । अतः चैक किस देयराशि के लिये जारी किया गया यह अपस्पष्ट होने के आधार पर परिवाद निरस्त करते हुये अभियुक्त को दोषमुक्त किया गया! जिसकी पुष्टि उच्च न्यायालय ने प्रस्तुत अपील आधारहीन पाते हुये, निरस्त कर की।
जिसके विरुद्ध प्रश्नगत अपील प्रस्तुत की गयी है। पक्षों को सुना गया तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया चैकधारक को यह सिद्ध करना आवश्यक है कि चैक अभियुक्त ने जारी किया है तथा भुगतान के लिये प्रस्तुत करने पर अनादरित हुआ यह दोनों तथ्य प्रश्नगत विषय में अउत्तरित है। अतः सिद्ध करने का भार अभियुक्त पर था कि चैक धारक के पास कैसे पहुंचा। जिसके लिये जो कुछ कहा गया वह किसी विश्वसनीय साक्ष्य से समर्थित नहीं है, अतः निम्न दोनों न्यायालयों द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण अवैध है तथा विधि के अन्तर्गत अपुष्ट है तथा निरस्त होने योग्य है। अभियुक्त का दोषसिद्ध अवधारित किया जाता है तथा अभियुक्त को पारित हर्जा व वाद व्यय भुगतान के निर्देश दिये गये।
क्रिमनल अपील संख्या-1545/2019 SC-Uttam Singh versus Devinder Singh Hudan