तलाक लेने का पहला आधार है-जारता(Adultery)

हिन्दू विवाह अधिनियम (hindu marriage act)-1955 की धारा 13 (1) (i) जारता(Adultery) –

“जारकर्म” शब्द का प्रयोग वर्तमान धारा में नहीं किया गया है, सिवाय इसके “उसके उसकी पति या पत्नी के अपेक्षाकृत किसी एक दूसरे व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक संभोग या मैथुन(Sex)” शब्दों को धारा 13 (1) में स्थान प्रदान किया गया है। जारकर्म की परिभाषा भी इसी तरह से की गई है। इसका अभिप्राय यह है कि एक विवाहित व्यक्ति अथवा एक दूसरे विपरीत लिंग के साथ मैथुन(Sex) क्रिया का होना होता है, जो उसका पति या पत्नी नहीं होता है। देखें, गीता बाई बनाम फत्तू, ए० आई० आर० 1966 म० प्र० 1301 यह स्पष्ट है कि विवाह से तन-मन एक दूसरे को समर्पित करने का दायित्व उत्पन्न होता है। विवाह की पूर्णता के लिये लैंगिक संभोग को आवश्यक माना गया है। विवाह के पक्षकार यदि अन्य व्यक्ति से लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं तो ऐसा कृत्य नैतिकता के विरुद्ध और विवाह के पक्षकार के साथ विश्वासघात माना जायेगा। दम्पत्ति का अन्य स्त्री या पुरुष के साथ लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करना “जारता(Adultery)” कहलाता है। यदि विपक्षी ने अपने पति या पत्नी से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वेच्छा से विवाह के पश्चात् मैथुन(Sex) किया है तो विपक्षी जारता(Adultery) का दोषी माना जायेगा। विवाह का मुख्य उद्देश्य कामुकता तथा यौन सम्बन्धों को नियमित तथा संयमित करना होता है। विवाह के उपरान्त पति-पत्नी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह विवाहोत्तर संभोग न करें। विवाह सूल के बाहर यौन सम्बन्ध रखना एक जघन्य वैवाहिक अपराध है। यदि विवाह से पूर्व पति एवं पत्नी में से किसी ने भिन्न व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित कर रखे थे तो उसका प्रभाव विवाह पर नहीं पड़ेगा और यह आरोप विवाह विच्छेद के लिये आधार नहीं माना जायेगा। इस आधार के अधीन तीन शर्तों को पूरा होना चाहिये। प्रथम, यह कि विवाह अनुष्ठापन के पश्चात् विवाहोत्तर मैथुन(Sex) हो, विवाह के पश्चात् से अर्थ है विपक्षी का प्रार्थी के साथ विवाह के बाद, द्वितीय, विपक्षी ने विवाहेत्तर संभोग स्वेच्छा से किया हो, अर्थात् यदि संभोग छल या बल अथवा मादक वस्तु के प्रभाव में जब कि विपक्षी को यह ज्ञान न हो कि उसके साथ क्या हो रहा है या वह क्या कर रहा है, तो विपक्षी का कोई अपराध नहीं माना जायेगा। आपराधिक मनःस्थिति होने पर भी जारता(Adultery) के आधार पर विवाह विच्छेद हो सकता है, तृतीय, जिस व्यक्ति ने विपक्षी के साथ मैथुन(Sex) किया है वह उसकी पत्नी या पति न हो। यदि वह अन्य व्यक्ति भी विपक्षी का विवाहित साथी है, तो जारता(Adultery) का अपराध नहीं होगा। उदाहरणार्थ, यदि पति के दो पत्नियाँ हों तो उनके साथ मैथुन(Sex) जारता(Adultery) की कोटि में नहीं आयेगा। यह शर्त उन्हीं विवादों पर लागू होगी, जो अधिनियम से पूर्व अनुष्ठापित किये गये हों क्योंकि शास्त्रीय विधि में बहु पलित्व की अनुमति थी। किन्हीं समुदायों में बहु पतित्व की प्रथा भी थी। केवल इस आधार पर कि विपक्षी पर पुरुष अथवा स्त्री आपस में घनिष्ट प्रेम अथवा प्रेम सम्बन्ध अथवा मिलता बनाये हैं, तो विवाह विच्छेद नहीं हो सकता है। ऐसी दशा में यह हो सकता है कि प्रार्थी विपक्षी से घृणा करे अथवा अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाये। किन्तु विपक्षी द्वारा कोई वैवाहिक अपराध न होने की दशा में विवाह विच्छेद नहीं मिल सकता है।

विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम, 1976 के पूर्व यह उपबन्ध था कि विपक्षी जारता(Adultery) की दशा में ” रह रहा हो”। जारता(Adultery) करना और जारता(Adultery) में रहना में अन्तर है। जारता(Adultery) में रहने से तात्पर्य जारता(Adultery) का अपराध जीवन का निरंतर क्रम बन जाने से होता है। देखें- नारायणन बनाम पारुकुट्टी, ए० आई० आर० 1973 केरल 171। जारता(Adultery) करने का अर्थ है, एक दो बार या यदा-कदा किसी तीसरे व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित करना। बंक्ष निधि बनाम कमला देवी, ए० आई० आर० 1980 उड़ीसा 171 में यह निर्णीत किया गया कि मूल उपबन्ध में यदा-कदा या एक दो बार जारता(Adultery) करना विवाह विच्छेद का आधार नहीं था। वर्तमान स्थिति यह है कि जारता(Adultery) का एकमात्र अपराध भी विवाह विच्छेद का आधार है। जारता(Adultery) का अर्थ है एक विवाहित व्यक्ति द्वारा किसी विषम लिंगी व्यक्ति के साथ जो उसका विवाहिक साथी नहीं है संभोग करना, भले ही यह दूसरा व्यक्ति विवाहित है या अविवाहित, विधवा है या विधुर उसके पति या पत्नी से सहमति या मौनानुकूलता प्राप्त है या नहीं। साम्राज्य नादर बनाम अब्राहम, ए० आई० आर० 1970 मद्रास 434, ने यह निर्णय किया कि इन तथ्यों से जारता(Adultery) का अपराध न्यून नहीं हो जाता है। इसी संदर्भ में सुब्रत बनाम दीप्ती, ए० आई० आर० 1974 कल 61, उल्लेखनीय है।

पति या पत्नी का अन्य स्त्री या पुरुष के साथ यौन सम्बन्ध ही जारता(Adultery) कहलाता है। यदि विवाह के पक्षकार के साथ बलात्कार किया गया हो, तो वह जारता(Adultery) नहीं होगा। पति या पत्नी से भिन्न व्यक्ति के साथ स्वेच्छापूर्वक किया गया संभोग ही जारता(Adultery) माना जायेगा। राजेन्द्र अग्रवाल बनाम शारदा देवी, ए० आई० आर० 1993 म० प्र० 142, में कहा गया कि सन् 1976 में वर्तमान धारा में संशोधन हो जाने के पश्चात् किसी एक दूसरे व्यक्ति के साथ जो कि उसका / उसकी पति या पत्नी नहीं होता है, स्वेच्छिक संभोग करने के एक भी दृष्टांत को विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करने के लिये पर्याप्त आधार माना जाता है। माल गैर विवाहिक पक्षकार के साथ एक विवाहिक पक्षकार का जारकर्म के अस्तित्वशील होने की आशंका, विवाह विच्छेद को मंजूर करने के लिये पर्याप्त नहीं होता है। सामान्य रूप से, पति की कुख्याति या उसके पत्नी की या उसे उसको एक विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के साथ देखा गया, आदि प्रकार के तथ्य न तो जारकर्म को सिद्ध करते हैं और न ही जारकर्म की संभावना को जन्म देते हैं। देखें डी० हन्दुरसन बनाम हन्दुरसन, ए० आई० आर० 1970 मद्रास 1041 इसी प्रकार से यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को उसके पति या पत्नी के विपरीत लिंग के साथ अनुचित सम्बन्ध के बारे में बार-बार पत्र लिखता हो तो इसे भी जारकर्म के प्रमाण या साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता है। देखें- चन्द्रमोहनी बनाम अविनाश प्रसाद श्रीवास्तव, ए० आई० आर० 1976 सु० कौ० 581|

वैवाहिक पक्षकारों में से कोई भी पक्षकार अधिनियम की धारा 13 उपधारा (1) के अधीन जारकर्म के आधार पर विवाह विच्छेद हेतु याचिका प्रस्तुत कर सकता है। वह पक्षकार जो स्वयमेव जारकर्म का शिकार हो गया है, वह इसी आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री को नहीं प्राप्त कर सकता है, कारण कि विधिक रूप से किसी भी व्यक्ति को स्वयमेव उसकी त्रुटियों के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री उसके पक्ष में पारित नहीं की जा सकती है यद्यपि वही लुटि उसके विपक्षी के लिये कथित डिक्री का एक आधार बन जाता है। सन् 1976 में संशोधन होने के पश्चात् जारकर्म का मात्र अकेला कार्य ही विवाह विच्छेद के लिये एक पर्याप्त आधार होता है। इस संशोधन के पूर्व जारकर्म होने का तथ्य सिद्ध करने की की जाती थी।

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